Jaishankar Prasad ka jivan parichay

Jaishankar Prasad ka jivan parichay | जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

Jaishankar Prasad ka jivan parichay | जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय :- इस लेख में आज हम साहित्य के सबसे प्रसिद्ध रचनाकार Jaishankar Prasad ka jivan parichay | जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय देने वाले है। जिसमें हम आपको जयशंकर प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उनके साहित्य और रचनाओं की विस्तृत जानकारी देने वाले हैं।

साथ ही हम यहां बताएंगे कि जयशंकर प्रसाद ने कुल कितने नाटक लिखे हैं, जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध रचना कौन सी है, Jaishankar Prasad ka janm kahan hua tha आदि। बिना देर किए इस लेख को शुरू करते हैं और जानते हैं, जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय कक्षा 12 pdf.


Jaishankar Prasad ka jivan parichay | जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के उन रत्नों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। छायावाद युग के प्रमुख कवि होने के साथ-साथ वे एक कुशल नाटककार, कहानीकार और उपन्यासकार भी थे। उनकी रचनाओं में जीवन के गहन अनुभवों, प्रकृति के सौंदर्य और मानवीय संवेदनाओं का मार्मिक चित्रण मिलता है।

इनका जन्म भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के काशी में 30 जनवरी 1889 में हुआ था। उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई और उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के सबसे प्रसिद्ध कान्य कुव्ज वैश्य हलवाई परिवार में हुआ था।

इनके पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद था। जिनका नाम पूरे काशी में दान देने के साथ-साथ कलाकारों का आदर करने के लिए प्रसिद्ध था, पूरे काशी में इनका बहुत सम्मान किया जाता था। इनका स्वर्गवास उस समय हुआ जब इनकी आयु महज 11 वर्ष थी। इनकी माता का नाम मुन्नी बाई था, इनका देहांत तब हुआ जब जयशंकर प्रसाद की उम्र केवल 15 वर्ष थी।

उनकी जिंदगी में सबसे मुश्किल वक्त तो तब आया जब इनके बड़े भाई शंभू रन का देहांत हो गया तब इनकी आयु में 17 वर्ष थी लेकिन इनके ऊपर कई सारी जिम्मेदारियां आ गई घर का सारा खर्चा साथी उनके भाभी तथा उनके बच्चे की फीस जिम्मेदारी इन्हीं के ऊपर थी लेकिन जयशंकर प्रसाद ने इस मुसीबत का सामना बहुत ही साहस के साथ किया और अपने परिवार का अच्छे से पालन पोषण किया।


Education of Jaishankar Prasad | जयशंकर प्रसाद की शिक्षा

जयशंकर प्रसाद को बचपन से ही  साहित्य और कला में गहरी रुची थी, वे अपनी प्रारंभिक शिक्षा काशी से ही प्राप्त कीए थी। उन्होंने संस्कृत और हिंदी साहित्य का गहन अध्ययन किया था।

संस्कृत के गंभीर अध्ययन ने उनकी भाषा पर एक विशेष छाप छोड़ी, जो उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इनके प्रारंभीक शिक्षक श्री मोहिनी लाल गुप्त थे, जिनका उपनाम रसमय सिद्ध था। इसके बाद भी उन्होंने कई अच्छे शिक्षक और विद्वानों से शिक्षा प्राप्त की जिससे उनकी रुचि साहित्य में बढ़ती चली गई।

इतिहास के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि, जयशंकर प्रसाद ने महज 9 वर्ष की आयु में एक सवैया लिखकर अपने शिक्षक रसमय सिद्ध को दिखाया था, जो की ब्रजभाषा में लिखा गया था जिसका नाम कलाधर था।

उन्होंने साहित्य शास्त्र के साथ-साथ इतिहास, पुराण तथा वेद का भी गंभीर अध्ययन किया था। उन्हें बाग बगीचे लगाना तथा भोजन बनाने का भी बड़ा शौक था, वे शतरंज के माही खिलाड़ी थे।


जयशंकर प्रसाद का विवाह

जयशंकर प्रसाद का वैवाहिक जीवन में भी काफी उतार-चढ़ाव आए उन्होंने सबसे पहले वर्ष 1908 में विंध्यवासिनी देवी नामक महिला से शादी की लेकिन क्षय रोग के कारण 1916 ई॰ में उनकी मृत्यु हो गई। यह वही समय था जब उनके घर में क्षय रोग  के संक्रामक कीटाणु प्रवेश कर गए।

इसके बाद वर्ष 1917 ई॰ में उन्होंने सरस्वती देवी नामक महिला के साथ दूसरा विवाह संपन्न किया, लेकिन उन्हें भी क्षय रोग के कीटाणुओं ने संक्रमित कर दिया और विवाह के 2 वर्षों बाद ही 1919 ई॰ में उनका भी देहांत हो गया।

इसके बाद जयशंकर प्रसाद को विवाह करने की लालसा नहीं रही।  लेकिन लोगों और उनके रिश्तेदारों द्वारा समझाने पर तथा अपनी भाभी के शोकमय जीवन को बेहतर बनाने के लिए उन्हें मजबूर होकर फिर से विवाह करने का निर्णय किया और उन्होंने 1919 ई॰ में कमला देवी नामक महीला से तीसरा विवाह किया। जिनसे उन्हे रतन शंकर प्रसाद नामक एक पुत्र भी है, जिनका जन्म 1922 ईस्वी में हुआ था।

जयशंकर प्रसाद अपने जीवन के अंत में स्वयं क्षय रोग से ग्रसित हो गए थे। हालांकि उन्होंने लंबे समय तक आयुर्वेदिक, एलोपैथिक और होम्योपैथिक चिकित्सा का सहारा लिया, लेकिन उसके बावजूद उन्हें इस रोग से मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकी और अंततः वे इस रोग के कारण 15 नवंबर 1937 ई॰ को महज 47 वर्ष की आयु में परलोक सिधार गए।


Jaishankar Prasad ka Sahityik Parichay | जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय

जयशंकर प्रसाद जी की कविता में प्रकृति, प्रेम और दर्शन का अद्भुत सम्मिश्रण देखने को मिलता है। ‘कामायनी’ उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति है, जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति और दर्शन को काव्य रूप दिया है।

उन्होंने हिंदी नाटक को एक नई दिशा दी। ‘स्कंदगुप्त’, ‘चंद्रगुप्त’ और ‘अजातशत्रु’ जैसे ऐतिहासिक नाटकों के माध्यम से उन्होंने भारतीय इतिहास को नाट्य रूप में प्रस्तुत किया।

उनकी कहानियों में मनोवैज्ञानिक गहराई और सामाजिक यथार्थवाद झलकता है। ‘उर्वशी’ उनकी सबसे प्रमुख कहानियों में से एक है। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘कंकाल’, ‘तितली’ और ‘इरावती’ जैसे प्रमुख उपन्यास लिखे हैं। इन उपन्यासों में उन्होंने समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है।


जयशंकर प्रसाद की कविताएं

जयशंकर प्रसाद ने सबसे पहले ब्रजभाषा में कविता लिखी थी। स्रोतों के अनुसार पता चलता है, कि उन्होंने 1901 में अपनी पहली कविता रची थी, जो एक सवैया छंद है परंतु यह छंद प्रकाशित नहीं हुई। उनकी सर्वप्रथम प्रकाशित कविता भारतेंदु में 1906 में हुई थी

इसके बाद जयशंकर प्रसाद का कविता संग्रह प्रेम पाठक 1909 ई॰ में इंदू में प्रकाशित हुआ था। यह पहले ब्रजभाषा में प्रकाशित हुआ, लेकिन नवंबर 1914 में इसे खड़ी बोली में प्रेम पथ नाम से प्रकाशित किया गया और इसका अवशिष्ट अंश दिसंबर 1914 में चमेली नामक शीर्षक के साथ प्रकाशित हुआ।

इन सब के अलावा जयशंकर प्रसाद ने कई प्रसिद्ध कविताओं की रचना की जिनमें उन्होंने 1936 ई॰ में कामयानी नामक महाकाव्य की रचना की, जो अब तक का सबसे प्रसिद्ध महाकाव्य है।

यहां हम जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कुछ प्रमुख कविताओं के बारे में बता रहे हैं, जैसे की :-

  • कितने दिन जीवन जल-निधि में
  • कोमल कुसुमों की मधुर रात
  • अब जागो जीवन के प्रभात
  • पेशोला की प्रतिध्वनि
  • निधरक तूने ठुकराया तब
  • मेरी आँखों की पुतली में
  • तुम्हारी आँखों का बचपन
  • अरे कहीं देखा है तुमने
  • काली आँखों का अंधकार
  • चिर तृषित कंठ से तृप्त-विधुर
  • हे सागर संगम अरुण नील
  • जगती की मंगलमयी उषा बन
  • शेरसिंह का शस्त्र समर्पण
  • अरे!आ गई है भूली-सी
  • शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा
  • अंतरिक्ष में अभी सो रही है
  • मधुर माधवी संध्या में
  • ओ री मानस की गहराई
  • आह रे,वह अधीर यौवन
  • आँखों से अलख जगाने को
  • उस दिन जब जीवन के पथ में
  • अपलक जगती हो एक रात
  • वसुधा के अंचल पर
  • जग की सजल कालिमा रजनी

जयशंकर प्रसाद के द्वारा कहानीयाँ

जयशंकर प्रसाद की सर्वप्रथम 1912 ई॰ में ‘ग्राम’ नामक  पहली कहानी इंदु में प्रकाशित हुई। जयशंकर प्रसाद की पांच कहानी संग्रह को मिलकर कुल 70 कहानीयां है लेकिन उर्वशी और बभ्रुवाहन जो कि चित्रधारा से संकलित की गई थी उन्हें मिलाकर उनके द्वारा रचित कहानियां की कुल संख्या 72 बताई जाती है। जयशंकर प्रसाद ने हिंदी कहानी में अपना विशिष्ट योगदान दिया है।

यहां नीचे हम जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कुछ प्रमुख कहानियों के बारे में बता रहे हैं। जैसे की :-

  • रमला
  • छोटा जादूगर
  • बभ्रुवाहन
  • विराम चिन्ह
  • शरणागत
  • चंदा
  • भीख में
  • चित्र मंदिर
  • ब्रह्मर्षि
  • पंचायत
  • जहांआरा
  • मधुआ
  • गुंडा
  • स्वर्ग के खंडहर में
  • उर्वशी
  • इंद्रजाल
  • गुलाम
  • ग्राम
  • देवदासी
  • बिसाती
  • प्रणय-चिह्न
  • नीरा
  • रसिया बालम
  • सिकंदर की शपथ
  • आकाशदीप
  • पुरस्कार
  • सालवती
  • अमिट स्मृति

जयशंकर प्रसाद के द्वारा लिखे नाटक

जयशंकर प्रसाद के सबसे प्रमुख नाटक उर्वशी और बभ्रुवाहन  चंपू आदि है। लेकिन इन सब को छोड़कर उन्होंने 8 ऐतिहासिक, 2 भावनात्मक और 3 पौराणिक नाटकों की रचना की है यानी कि उन्होंने कुल 13 नाटकों की नाटकों की रचना की है।

यहां नीचे हम जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कुछ प्रमुख नाटकों के नाम बता रहे हैं, जैसे की :-

  • जन्मेजय का नाग
  • यज्ञ
  • चंद्रगुप्त
  • राज्यश्री
  • कामना
  • एक घूंट
  • चंद्रगुप्त
  • ध्रुवस्वामिनी
  • विशाखा
  • कल्याणी परिणय
  • उर्वशी
  • सज्जन प्रायश्चित
  • स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य
  • अग्निमित्र

जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित उपन्यास

जयशंकर प्रसाद ने अपने जीवन में तीन सबसे प्रमुख उपन्यास लिखे हैं इरावती, तितली और कंकाल जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित उपन्यास कंकाल के प्रकाशित होने के बाद प्रेमचंद ने इसके प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त की थी।

यहाँ नीचे हम जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रमुख उपन्यासों के नाम बता रहे हैं, जैसे की :-

  • इरावती (अपूर्ण)
  • तितली
  • कंकाल

जयशंकर प्रसाद के साहित्यिक योगदान

जयशंकर प्रसाद एक संवेदनशील व्यक्ति थे और उनकी रचनाओं में उनकी यह संवेदनशीलता स्पष्ट रूप से दिखाई देती थी। वे एक राष्ट्रभक्त थे और उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना झलकती थी। वह आध्यात्मिक चिंतन में गहरी रुचि रखते थे। यह उनकी रचनाओं में भी प्रतिबिंबित होता है।

जयशंकर प्रसाद की रचनाएं आज भी हिंदी साहित्य के पाठकों को प्रेरित करती है।  उन्होंने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी और इसे विश्व पटल पर ला खड़ा किया। उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति, दर्शन और समाज का गहरा अध्ययन देखने को मिलता है।

उन्होंने कई प्रमुख कृतियां लिखि कामयानी, आंसू, झरना, उर्वशी, इंद्रजाल, कंकाल, इरावती, चंद्रगुप्त, अजातशत्रु, तितली आदि।


जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक विशेषताएं

जयशंकर प्रसाद की भाषा सरल और प्रभावशाली होती है। उन्होंने संस्कृत के शब्दों का प्रयोग कर अपनी भाषा को समृद्ध बनाया है। उनकी कविताओं में प्रकृति का बहुत सुंदर चित्रण मिलता है।

उनकी कहानियों और उपन्यासों में पात्रों के मनोविज्ञान को गहराई से उजागर किया गया है। उनके नाटकों में भारतीय इतिहास की झलक मिलती है। उनकी रचनाओं में दार्शनिक चित्रण का भी स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।

हालांकि उन्होंने अपने काव्य लेखन की शुरुआत ब्रजभाषा से की थी, लेकिन समय के साथ वे खड़ी बोली की तरफ बढ़ते गए और इसी भाषा में उन्होंने कई उपन्यास और कहानीयां लिखि।

जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के एक महान रचनाकार थे, उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचायां। उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक है और आने वाली पीढियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।


जयशंकर प्रसाद के पुरस्कार एव सम्मान

जयशंकर प्रसाद को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिले। हालांकि उनके जीवन काल में आधिकारिक पुरस्कार और सम्मानों के रिकॉर्ड उतने विस्तृत नहीं है, जितने आज कल के लेखकों के लिए उपलब्ध होते हैं। लेकिन उसके बावजूद हम यहां उन पुरस्कारों के नाम बता रहे हैं, जिनसे उन्हे  सम्मानित किया गया है। जैसे की :-

  • सहित्य अकादमी पुरस्कार।
  • मंगलाप्रसाद पारितोषिक ‘कामायनी’।
  • भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, और पद्मभूषण।

निष्कर्ष :- 

आज का यह लेख Jaishankar Prasad ka jivan parichay यहीं पर समाप्त होता है। आज के इस लेख में हमने आपको जयशंकर प्रसाद कौन है, जयशंकर प्रसाद की रचनाएं कितनी है, जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कविता कौन सी है, जयशंकर प्रसाद का पूरा नाम क्या है आदि के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान की है। उम्मीद करते हैं, यह लेख आप के लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ होगा।

लेकिन फिर भी यदि इससे संबंधित आपको कोई प्रश्न पूछना है, तो आप नीचे कमेंट के माध्यम से हमसे संपर्क कर सकते हैं। लेकिन यदि यह लेख आपको पसंद आया है, तो आप इसे जितना हो सके उतना शेयर जरूर करें, ताकि औरों को भी जयशंकर प्रसाद के बारे में जानकारी प्राप्त हो सके।


FAQ’S :-

Q1. जयशंकर प्रसाद के कितने नाटक है ?

Ans - जयशंकर प्रसाद की कुल 13 नाटक है।

Q2. जयशंकर प्रसाद की पहली कहानी कौन सी है ?

Ans - जयशंकर प्रसाद की सबसे पहली कहानी ‘ग्राम’ है, जो 1940 में प्रकाशित हुई थी।

Q3. जयशंकर प्रसाद की भाषा क्या थी ?

Ans - जयशंकर प्रसाद की भाषा हिंदी थी।

Q4. जयशंकर प्रसाद की अंतिम रचना कौन सी है ?

Ans - जयशंकर प्रसाद की अंतिम रचना ‘कामायनी’ है, जो की हिंदी भाषा का एक महाकाव्य है।

Q5. कामायनी की कथा के कितने रूप हैं ?

Ans - कामायनी की कथा के कुल 4 रूप है।

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